आजादी के बाद : क्या खोया-क्या पाया? : हिंदी निबन्ध



समय के भाल पर भारतीय आजादी का 50 वाँ सूरज उदित हुआ तो देश के प्रबुद्ध लोग  विगत 50 वर्ष की समीक्षा करने लगे। राजनीतिज्ञों का अपना नजरिया है, तो समाजशास्त्री अपने  ढंग से सोच रहे हैं। अर्थशास्त्रियों का अपना दृष्टिकोण है, तो वैज्ञानिकों की सोच कुछ और।  संत पुरुषों की अपनी अवधारणा है तो आम आदमी का अपना मत है। इन सब के चिन्तन का  आकलन कर कुछ निष्कर्ष प्रस्तुत किए जा सकते हैं। इस प्रस्तुति में बहुत अन्तर रह सकता है,  पर कुछेक कटु सच्चाइयाँ वर्तमान का बड़ा सच है, जिसके निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता  है कि आज हम जिस युग में जी रहे हैं उसमें नैतिक एवं सामाजिक मूल्यों का हृास इतनी तीव्र  गति से हुआ कि सामाजिक स्तर पर हमें निराशा का गहरा कुहासा झेलना पड़ रहा है, जिसमें  हमें सही राह दिखायी नहीं दे रही है। धर्म के स्तर पर कर्मकाण्डी कठमुल्लापन; राजनीति के  स्तर पर स्वार्थता; समाज के स्तर पर संकीर्णता, व्यक्ति के स्तर पर अधिकार लिप्सा आदि ऐसे  तत्त्व हैं जिन्होंने समूचे जीवन को अराजकता के चैराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है।  साम्प्रदायिकता का भयावह खेल चल रहा है; जातिगत सीमाएँ और ज्यादा सिकुड़ती जा रही हैं,  अपनी व्यक्तिगत एषणाओं की पूर्ति के लिए लोग सभी प्रकार के आदर्शों की बलि चढ़ा रहे हैं,  व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्धि की दौड़ में सभी भागे जा रहे हैं।  कश्मीर, पंजाब और असम में साम्प्रदायिकता तथा आतंकवाद का बोलबाला है; क्षेत्रीयता और  भाषा की समस्याएँ फण फैलाए समाज को लीलने का प्रयास कर रही है महँगाई और ब रोजगारी  द्रा पदी के चीर से होड़ कर रही है; जनस ा वृद्धि का दौर जारी है। वह दिनदुनी रात चैगुनी  सुरसा के मुँह की नाँईं बढ़ रही है; साम्प्रदायिकता की अमर ब ल विष बेल बन कर फैल रही  है; जातीयता के नाम पर साम हिक हत्याऑ का न गा नाच हो रहा है, भ्रष्टाचार का बाजार गर्म  है, तस्करी व काला बाजारी आदि आग में घी का काम कर रहे है ।  भारत विदेशी ऋण क बोझ से दबा जा रहा है, आर्थिक दृष्टि स हमारी रीढ़ की हड्डी  ही टूट चुकी है। पेप्सी कोला संस्कृति का बोल बाला है। पूँजीवादी युग का ‘प टेंट कानून’ पनप  रहा है, बढ़ता हुआ औद्योगिकीकरण मजदूरों का हक छीन रहा है, महानगरा का विस्तार खेता  को लील रहा है। झा पड़ पट्टियों की बगल में भव्य इमारत खड़ी हा रही है दा जून की रोटी  हेतु ज ते बाल श्रमिक शोषण की चक्की  पिस रहे हैं, सार्वजनिक उद्योग दिन-ब-दिन घाटे  में जा रहे हैं तथा बोझ बन गये है । कहने को स्वराज्य मिला किन्तु सुराज्य की स्थापना नहीं  हुई। गाँवा की स्थिति आज भी वैसी ही है। कविवर रामधारी सि ह ‘दिनकर’ न यथार्थ चित्रांकन  करते हुए लिखा है-
‘‘वह स सार जहाँ पर अब तक पहुँची नही किरण है।
जहाँ क्षितिज है मौन और यह अम्बर तिमिर वरण है।

देख जहाँ का दृश्य, आज भी अन्तस्तल हिलता है।
माँ को लज्जा वसन और शिशु को न क्षीर मिलता है।’’
देख जहाँ का दृश्य, आज भी अन्तस्तल हिलता है। माँ को लज्जा वसन और शिशु को न क्षीर मिलता है।’’ यह तो सिक्क का एक पहलू हुआ कि हमने क्या खा ा ? आइये उसके दूसरे पहलू को भी देखलें कि हमने इन 50 वर्षों में क्या पाया है। आजादी के बाद अनेकानेक नकारात्मक दवाबा व चुनौतियों तथा विद आक्रमणा ं के बावजूद भारतीय ला कतन्त्र पड़ोसी राज्यों की तरह असफल नही हुआ है, बल्कि आज भी अपनी निज गरिमा के साथ विश्व रंगमंच पर स्थापित है तथा दिन-ब-दिन प्रगति के पथ पर अग्रसर है। चाहे वह प्रतिरक्षा का क्षेत्र हो या विज्ञान तकनीक या औद्योगिक परिदृश्य एवं शिक्षा के विकास का। अपनी उपलब्धियों के निरन्तर गतिमान चक्र क सहारे आज भारत विश्व की 6 बड़ी अर्थ व्यवस्थाओ म ं से एक है। आज हम खाद्यान्न उत्पादन मेंयदि आत्म निर्भर है तो औद्योगिक आधार म पर्याप्त विस्तार क साथ ही हम बुनियादी तथा प ँजीगत दोना प्रकार क उद्योगो म काफी हद तक आत्मनिर्भरता प्राप्त कर चुक है । हम युद्ध के हामी नहीं रह है किन्तु हमने पड़ोसी देश की नाकाम एवं नापाक कोशिशों का मुँह ता ड़ जवाब दिया है। हमारी सीमाएँ सुरक्षित हैं। हम उन चुनिन्दा देशों में से एक है जिनक पास अपने सैटेलाइट बनाने एवं उन्हें अन्तरिक्ष मेंछोड़ने की क्षमता है। पोकरण मेंएक के बाद एक परमाणु विस्फोट कर भारत विश्व पटल पर एक परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र बन गया है। आज भारत का लोकतन्त्र विश्व का सबसे बड़ा व सफल लोकतन्त्र माना जाता है। दुग्ध उत्पादन में भारत प्रथम स्थान पर आ गया है। भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी शिक्षा प्रणाली वाला देश बन गया है तथा उत्तरा त्तर शिक्षा का विकास हो रहा है। परिवहन, विद्युत उत्पादन, दूर स चार आदि क्ष ों में प्रशंसनीय उपलब्धियाँ हासिल की हैं। भारतीय रेल विश्व की तीन बड़ी रेल सेवाओं में से एक है। ‘एयर इण्डिया’ विश्व की प्रतिष्ठित विमानन सेवा है। किसी राष्ट्र के निर्माण में 50 वर्ष का समय कोई लम्बा समय नहीं है। वास्तव में राष्ट्र निर्माण एक ऐसा कार्य है जिसकी सीमाएँ बढ़ती रहती हैं। आगे का रास्ता अभी बहुत लम्बा है इसलिए हमें अभी बहुत से काम पूरे करने हैं। जिस गरीबी की दशा में देश के लाखों लोग रह रहे हैं उसे मिटाना है। आर्थिक और सामाजिक असमानता जो दीवार बनकर एक मनुष्य को दूसरे से अलग कर रही है उसे हटाने की आवश्यकता है। वंचितों को सबल बनाने हेतु महात्मा गाँधी के कार्यौं को आगे बढ़ा ‘रामराज्य’ के सपने को साकार करना है। अतः आवश्यकता है सारे देश को एकजुट होकर विकास के चक्र को आगे बढ़ाने की, सबको संगठित होकर समर्पण की भावना के साथ इस महान् देश को उसकी नियति तक ले जाने का संकल्प लेने की, युवाओं को आगे आने तथा नेताओं को अपने आचरण में उदात्त मूल्यों की स्थापना कर भारत को पुनः सोने की चिडि़या बनाने की।देख जहाँ का दृश्य, आज भी अन्तस्तल हिलता है। माँ को लज्जा वसन और शिशु को न क्षीर मिलता है।’’ यह तो सिक्क का एक पहलू हुआ कि हमने क्या खा ा ? आइये उसके दूसरे पहलू को भी देखलें कि हमने इन 50 वर्षों में क्या पाया है। आजादी के बाद अनेकानेक नकारात्मक दवाबा व चुनौतियों तथा विद आक्रमणा ं के बावजूद भारतीय ला कतन्त्र पड़ोसी राज्यों की तरह असफल नही हुआ है, बल्कि आज भी अपनी निज गरिमा के साथ विश्व रंगमंच पर स्थापित है तथा दिन-ब-दिन प्रगति के पथ पर अग्रसर है। चाहे वह प्रतिरक्षा का क्षेत्र हो या विज्ञान तकनीक या औद्योगिक परिदृश्य एवं शिक्षा के विकास का। अपनी उपलब्धियों के निरन्तर गतिमान चक्र क सहारे आज भारत विश्व की 6 बड़ी अर्थ व्यवस्थाओ म ं से एक है। आज हम खाद्यान्न उत्पादन मेंयदि आत्म निर्भर है तो औद्योगिक आधार म पर्याप्त विस्तार क साथ ही हम बुनियादी तथा प ँजीगत दोना प्रकार क उद्योगो म काफी हद तक आत्मनिर्भरता प्राप्त कर चुक है । हम युद्ध के हामी नहीं रह है किन्तु हमने पड़ोसी देश की नाकाम एवं नापाक कोशिशों का मुँह ता ड़ जवाब दिया है। हमारी सीमाएँ सुरक्षित हैं। हम उन चुनिन्दा देशों में से एक है जिनक पास अपने सैटेलाइट बनाने एवं उन्हें अन्तरिक्ष मेंछोड़ने की क्षमता है। पोकरण मेंएक के बाद एक परमाणु विस्फोट कर भारत विश्व पटल पर एक परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र बन गया है। आज भारत का लोकतन्त्र विश्व का सबसे बड़ा व सफल लोकतन्त्र माना जाता है। दुग्ध उत्पादन में भारत प्रथम स्थान पर आ गया है। भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी शिक्षा प्रणाली वाला देश बन गया है तथा उत्तरा त्तर शिक्षा का विकास हो रहा है। परिवहन, विद्युत उत्पादन, दूर स चार आदि क्ष ों में प्रशंसनीय उपलब्धियाँ हासिल की हैं। भारतीय रेल विश्व की तीन बड़ी रेल सेवाओं में से एक है। ‘एयर इण्डिया’ विश्व की प्रतिष्ठित विमानन सेवा है। किसी राष्ट्र के निर्माण में 50 वर्ष का समय कोई लम्बा समय नहीं है। वास्तव में राष्ट्र निर्माण एक ऐसा कार्य है जिसकी सीमाएँ बढ़ती रहती हैं। आगे का रास्ता अभी बहुत लम्बा है इसलिए हमें अभी बहुत से काम पूरे करने हैं। जिस गरीबी की दशा में देश के लाखों लोग रह रहे हैं उसे मिटाना है। आर्थिक और सामाजिक असमानता जो दीवार बनकर एक मनुष्य को दूसरे से अलग कर रही है उसे हटाने की आवश्यकता है। वंचितों को सबल बनाने हेतु महात्मा गाँधी के कार्यौं को आगे बढ़ा ‘रामराज्य’ के सपने को साकार करना है। अतः आवश्यकता है सारे देश को एकजुट होकर विकास के चक्र को आगे बढ़ाने की, सबको संगठित होकर समर्पण की भावना के साथ इस महान् देश को उसकी नियति तक ले जाने का संकल्प लेने की, युवाओं को आगे आने तथा नेताओं को अपने आचरण में उदात्त मूल्यों की स्थापना कर भारत को पुनः सोने की चिडि़या बनाने की।
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