सोने का हिरण : रामकथा/रामायण | भाग-7



राम को कुटी से निकलते देखकर मायावी हिरण कुलाचें भरने लगा। राम को बहुत छकाया। झाडि़यों में लुकता-छिपता-भागता वह राम को कुटी से बहुत दूर ले गया। राम जब भी उसे पकड़ने का प्रयास करते, वह भागकर और दूर चला जाता। हिरण चालाक था। वह इतनी दूर कभी नहीं जाता था कि पहुँच से बाहर लगे। राम के सारे प्रयास विफल हुए। वे हिरण को पकड़ नहीं पाए। उन्होंने उसे जीवित पकड़ने का विचार त्याग दिया। धनुष उठाया। निशाना साध। और एक बाण उस पर छोड़ दिया। बाण लगते ही हिरण गिर पड़ा। ध्रती पर गिरते ही मारीच अपने असली रूप में आ गया। मारीच ने माया से केवल अपना रूप नहीं बदला था। आवाश भी बदल ली थी। अपनी आवाश राम जैसी बना ली थी। धरती पर पड़े हुए वह शोर से चिल्लाया, फ्हा सीते! हा लक्ष्मण!ध्वनि ऐसी थी जैसे बाण राम को लगा हो। वह सहायता के लिए पुकार रहे हों। बाण का प्रहार गहरा था। मारीच उसे अधिक देर तक सहन नहीं कर पाया। वह छटपटाता रहा। जल्दी ही उसके प्राण-पखेरू उड़ गए। रावण एक विशाल वृक्ष के पीछे खड़ा था। वह प्रसन्न था। उसकी चाल सफल हो गई थी। मारीच ने अपनी भूमिका अच्छी तरह निभाई थी। अब तक सब कुछ वैसा ही हुआ, जैसा उसने सोचा था। उसे राक्षस अवंफपन की बात याद आई। सीता का हरण हो तो राम के प्राण निकल जाएँगे। वह निशक्त हो जाएँगे। वह अगले चरण की तैयारी में जुट गया। मारीच की पुकार राम ने सुनी। वह पास ही थे। उन्हें समझने में देर नहीं लगी कि पुकार की मंशा क्या है! मायावी मारीच की पूरी चाल उनके सामने खुल गई। हिरण जानबूझकर भागता रहा। उन्हें कुटिया से दूर ले जाने के लिए। वह षड्यंत्र का अगला चरण विफल करना चाहते थे। उनकी चाल में तेशी आ गई ताकि जल्दी कुटिया पहुँच सवेंफ। सोने का हिरण  वह मायावी पुकार सीता और लक्ष्मण ने भी सुनी। लक्ष्मण उसका रहस्य तत्काल समझ गए। राम की तरह। उन्होंने बाण चढ़ाकर धनुष दृढ़ता से पकड़ लिया। चैकसी बढ़ा दी। वे राक्षसों की अगली चाल का सामना करने के लिए तैयार थे। साथ ही राम का आदेश उन्हें याद था। उनके लौटने तक सीता की रक्षा। लक्ष्मण की ओर से इसमें चूक की कोई संभावना ही नहीं थी। सीता वह आवाश सुनकर विचलित हो गईं। घबरा गईं। दौड़कर कुटिया के द्वार पर आईं। उन्होंने लक्ष्मण से कहा, “तुम जल्दी जाओ। जिस दिशा से आवाश आई है, उसी ओर। तुम्हारे भाई किसी कठिन संकट में पँफस गए हैं। उन्होंने सहायता के लिए पुकारा है। उनकी ऐसी कातर आवाश मैंने कभी नहीं सुनी। जाओ लक्ष्मण। जल्दी।” “आप चिंता न करें, माते!लक्ष्मण ने सीता को आश्वस्त करते हुए कहा। राम संकट में नहीं हैं। हो ही नहीं सकते। उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। हमने जो आवाश सुनी, वह बनावटी है। मायावी राक्षसों की चाल है। मुझे कुटिया से दूर ले जाने के लिए। आप निश्चिंत रहें। भाई राम जल्दी ही आते होंगे।सीता क्रोध् से उबल पड़ीं। लक्ष्मण का इस घड़ी में इतना शांत होना उन्हें समझ में नहीं आया। राम की आवाश सुनकर भी वे यहीं खड़े रहे। सहायता के लिए नहीं गए। सीता को इसके पीछे षड्यंत्र दिखाई दिया। लक्ष्मण की चाल। लगा कि लक्ष्मण राम का भला नहीं चाहते। उनके हितैषी नहीं हैं। चाहते हैं कि राम न रहें। मारे जाएँ। ताकि राजपाट उन दोनों का हो जाए। उनके रास्ते का काँटा निकल जाए। तुम्हारा मन पवित्र नहीं है। कलुषित है। पाप है उसमें। मैं समझ सकती हूँ कि तुम अपने भाई की सहायता के लिए क्यों नहीं जा रहे हो!सीता ने यहाँ तक कह दिया कि कहीं वे भरत के गुप्तचर तो नहीं हैं! सीता की बातों से लक्ष्मण को गहरा आघात पहुँचा। उनका हृदय छलनी हो गया। पर उन्होंने पलटकर उत्तर नहीं दिया। संयम बनाए रखा। सिर झुकाकर सब चुपचाप सुन लिया। वे सीता की पीड़ा समझ पा रहे थे। केवल इतना बोले, “हे देवी! यह राक्षसों का छल है। खर-दूषण के मारे जाने के बाद वे बौखला गए हैं। किसी तरह हमसे बदला लेना चाहते हैं। आप उनकी चाल में न आएँ। वे कुछ भी कर सकते हैं। मुझ पर विश्वास करें। राम को कुछ नहीं होगा।सीता का क्रोध् और बढ़ गया। क्रोध् में आँखों से आँसू बहने लगे। यह भी लग रहा था कि कहीं लक्ष्मण की बात सही न हो। यह डर था कि राम से बिछोह न हो। उन्होंने कहा, राम से बिछुड़कर मैं नहीं रह सकती। मैं जान दे दूँगी। हे लक्ष्मण! तुम उन्हें लेकर आओ।लक्ष्मण राम के लिए राम की आज्ञा का उल्लंघन कर रहे थे। उन्होंने सीता को प्रणाम किया और राम की खोज में निकल पड़े। लक्ष्मण के जाते ही रावण आ पहुँचा। तपस्वियों जैसा जटा-जूट। वैसे ही वस्त्रा। सीता ने साधू समझकर उसका स्वागत किया। रावण ने सीता के स्वरूप, संस्कार और साहस की प्रशंसा की। उसने सीता का परिचय प्राप्त करने के बाद कहा, फ्सुमुखी! मैं रावण हूँ । राक्षसों का राजा। लंकाध्पिति। मेरा नाम लेने पर लोग थरथरा उठते हैं। लेकिन तुम सुंदरी हो। सबसे अलग हो। तुम्हारे लिए मैं स्वयं चलकर आया हूँ। मेरे साथ चलो। सोने की लंका में रहो। मेरी रानी बनकर।सीता क्रोध्ति हो उठीं। कहा, “मैं प्राण त्याग दूँगी लेकिन तुम्हारे साथ नहीं जाऊँ गी। मैं राम की पत्नी हूँ । वे महाबलशाली हैं। तुम्हें उनकी शक्ति का अनुमान नहीं है। तुम चले जाओ नहीं तो तुम्हारा सर्वनाश हो जाएगा।रावण ने सीता की बात अनसुनी कर दी। खींचकर उन्हें रथ में बैठा लिया। सीता प्रयास करती रहीं। पर रावण के चंगुल से मुक्त नहीं हो सकीं। स्वयं को असहाय पाकर वे विलाप करने लगीं। फ्हा राम! हा लक्ष्मण!पुकारती रहीं। रावण का रथ लंका की ओर उड़ चला। मार्ग में वे पशुओं, पक्षियों, पर्वतों, नदियों से कहती जा रही थीं कि कोई उनके राम को बता दे। रावण ने उनका हरण कर लिया है। गिद्धराज जटायु ने सीता का विलाप सुना। उसने ऊँ ची उड़ान भरी। रावण के रथ पर हमला कर दिया। वृद्ध गिद्धराज ने रथ क्षत-विक्षत कर दिया। रावण को घायल कर डाला। क्रोध् में रावण ने जटायु के पंख काट दिए। जटायु अब उड़ नहीं सकता था। वह सीधे ध्रती पर आ गिरा। रावण का रथ टूट गया था। उड़ान नहीं भर सकता था। उसने तत्काल सीता को अपनी बाँहों में दबाया और दक्षिण दिशा की ओर उड़ने लगा। सीता को लगा कि अब संभवतः कोई उनकी सहायता नहीं कर पाएगा। उनका बचाव केवल एक ही था। राम को किसी तरह समाचार मिल जाए। उन्होंने अपने आभूषण उतारकर फेंकना प्रारंभ कर दिया। आभूषण वानरों ने उठा लिए। उन्हें आशा थी कि वानरों के पास ये आभूषण देखकर राम समझ जाएँगे। उन्हें पता चल जाएगा कि सीता किस मार्ग से गई हैं। रावण ने सीता को आभूषण फेंकने से नहीं रोका। उसे लगा कि सीता शोक में ऐसा कर रही हैं। कुछ ही समय में रावण लंका पहुँच गया। वह अपने ध्न-वैभव से सीता को प्रभावित करना चाहता था। उन्हें लेकर वह सीध अपने अंतःपुर में गया। राक्षसियों को सीता की निगरानी करते रहने को कहा। और बाहर निकल गया। थोड़ी देर में वह फिर लौटा। सीता को घूरते हुए उसने कहा, फ्सुंदरी! मैं तुम्हें एक वर्ष का समय देता हूँ। निर्णय तुम्हें करना है। मेरी रानी बनकर लंका में राज करोगी या विलाप करते हुए जीवन बिताओगी।सीता बार-बार रावण को धिकारती रहीं। राम का गुणगान करती रहीं। रावण को क्रोध् आ गया, “तुम्हारा राम यहाँ कभी नहीं पहुँच सकता। तुम्हें कोई नहीं बचा सकता। तुम्हारी रक्षा केवल मैं कर सकता हूँ। मुझे स्वीकार करो और लंका में सुख से रहो।फ्पापी रावण! राम तुझे अपनी दृष्टि से जलाकर राख कर सकते हैं। उनकी शक्ति देवता भी स्वीकार करते हैं। मैं उस राम की पत्नी हूँ, जिसके तेज और पराक्रम के आगे कोई नहीं ठहर सकता। तेरा सारा वैभव मेरे लिए अर्थहीन है। तूने पाप किया है। राम के हाथों तेरा अंत निश्चित है।राम की इतनी प्रशंसा सुनकर रावण कुछ चिंतित हो गया। उसने सोचा, खर-दूषण को मारने वाला अवश्य शक्तिशाली होगा। उसने तत्काल अपने आठ सबसे बलिष्ठ राक्षसों को बुलाया कहा, “तुम लोग पंचवटी जाओ। राम और लक्ष्मण वहीं रहते हैं। उनका एक-एक समाचार मुझे मिलना चाहिए। दोनों पर निगरानी रखो। मौका मिलते ही उन्हें मार डालो।उधर, सीता को पाने के लिए रावण ने अपनी योजना बदली। उन्हें अंतःपुर से निकालकर अशोक वाटिका में बंदी बना दिया गया। पहरा कड़ा कर दिया गया। राक्षसों-राक्षसियों को स्पष्ट निर्देश थे, “सीता को किसी तरह का शारीरिक कष्ट न हो। इसके मन को दुःख पहुँचाओ। अपमानित करो। लेकिन सीता को कोई हाथ न लगाए।रावण ने सब कुछ किया पर सीता का मन नहीं बदला। वे बार-बार राम का नाम लेती थीं। शेरों के बीच हिरणी की तरह बैठी रहती थीं। डरी-सहमी। रो-रोकर दिन काट रही थीं। सोने के हिरण ने उन्हें सोने की लंका में पहुचा दिया था। यहाँ से उन्हें राम ही बचा सकते थे।


Related Posts –


Previous
Next Post »

आपके योगदान के लिए धन्यवाद! ConversionConversion EmoticonEmoticon