पुरुष जनन तंत्र



पुरुष जनन तंत्र
पुरुष जनन तंत्रा को दर्शाने वाला श्रोणि क्षेत्रा का आरेखीय काट
पुरुष जनन तंत्र शरीर के श्रोणि क्षेत्र (पेल्विस रीजन) में अवस्थित होता है। इसके अंतर्गत एक जोड़ा वृषण, सहायक नलिकाओं के साथ-साथ एक जोड़ी ग्रंथियाँ तथा बाह्य जननेंद्रिय शामिल होते हैं। शरीर में वृषण उदर गुहा के बाहर एक थैली/धनी में स्थित होते हैं जिसे वृषणकोष (स्क्रोटम) कहते हैं। वृषणकोष वृषणों के तापमान को (शरीर के तापमान से 2-2.5 डिग्री सेंटीग्रेड) कम रखने में सहायक होता है जो शुक्राणुजनन के लिए आवश्यक है।
पुरुष जनन तंत्रा का आरेखीय दृश्य ;आंतरिक संरचनाओं को
दर्शाने वेफके लिए वृषण का अनुदैध्र्य काट
वयस्कों में प्रत्येक वृषण अंडाकार होता है
, जिसकी लम्बाई लगभग 4 से 5 सेमीऔर चैड़ाई लगभग 2 से 3 सेमी. होती है। वृषण सघन आवरण से ढंका रहता है। प्रत्येक वृषण में लगभग 250 कक्ष होते हैं जिन्हें वृषण पालिका (टेस्टिवुफलर लोब्युल्स) कहते हैं (चित्र 3.1 ब)। प्रत्येक वृषण पालिका के अंदर एक से लेकर तीन अति वुफंडलित शुक्रजनक नलिकाएँ (सेमिनिपफेरस ट्यूबुल्स) होती हैं जिनमें शुक्राणु पैदा किए जाते हैं। प्रत्येक शुक्रजनक नलिका का भीतरी भाग दो प्रकार की कोशिकाओं से स्तरित होती हैं, जिन्हें नर जर्म कोशिकाएँ (शुक्राणुजन / स्पर्मेटोगोनिया) और सर्टोली कोशिकाएँ कहते हैं। नर जर्म कोशिकाएँ अर्धसूत्री विभाजन (या अर्धसूत्रण) के पफलस्वरूप शुक्राणुओं का निर्माण करती हैं जबकि सर्टोली कोशिकाएँ जर्म कोशिकाओं को पोषण प्रदान करती हैं। शुक्रजनक नलिकाओं के बाहरी क्षेत्र को अंतराली अवकाश (इंटरस्टीशियल स्पेस) कहा जाता है। इसमें छोटी-छोटी रुध्रि वाहिकाएँ और अंतराली कोशिकाएँ (इंटरस्टीशियल सेल्स) या लीडिग कोशिकाएँ (इंटरस्टीशियल सेल्स) होती हैं। लीडिग कोशिकाएँ पुंजन (एंड्रोजन) नामक वृषण हार्मोन संश्लेषित व स्रवित करती हैं। यहाँ पर वुफछ अन्य कोशिकाएँ भी होती हैं जो प्रतिरक्षात्मक कार्य करने में सक्षम होती हैं। पुरुष लिंग सहायक नलिकाओं के अंतर्गत वृषण जालिकाएँ (रेटे टेस्टिस), शुक्र वाहिकाएँ (वास इपेफरेंशिया), अधिवृषण (ऐपिडिडिमिस) तथा शुक्रवाहक (वास डेपेफरेंस) होते हैं, (चित्र 3.1 ब)। वृषण की शुक्रजनक नलिकाएँ वृषण नलिकाओं के माध्यम से शुक्रवाहिकाओं में खुलती हैं। यह शुक्रवाहिका वृषण से चलकर अधिवृषण में खुलती हैं, जो प्रत्येक वृषण के पश्च सतह पर स्थित होती है। यह अधिवृषण शुक्रवाहक की ओर बढ़ते हुए उदर की ओर ऊपर जाती हैं और मूत्रशय के ऊपर की ओर लूप बनाती है। इसमें शुक्राशय से एक वाहिनी आती है और मूत्र मार्ग में स्खलनीय वाहिनी के रूप में खुलती है। ये नलिकाएँ वृषण से प्राप्त शुक्राणुओं का भंडारण तथा मूत्र मार्ग से इनका बाहर स्थानांतरण करती हैं।
मूत्रमार्ग मूत्रशय से निकल कर पुरुष के शिश्न (पेनिस) के माध्यम से गुजरता हुआ बाहर की ओर एक छिद्र के रूप में खुलता है जिसे मूत्रशय मुख (यूरेथ्रल मीऐटस) कहते हैं। शिश्न, पुरुष की बाहरी जननेन्द्रिय है । यह विशेष प्रकार के ऊतकों का बना होता है जो शिश्न के उद्घर्षण या उठान (इरेक्शन) में सहायता प्रदान कर वीर्यसेचन (इंसेमिनेशन) को सुगम बनाता है।
शुक्रजनक नलिकाओं के आरेखीय काट का एक दृश्य
शिश्न का अंतिम वर्धित भाग शिश्न मुंड (ग्लांस पेनिस) कहलाता है जो एक ढीली त्वचा से ढका होता है
, जिसे अग्रच्छद (पफोरस्किन) कहते हैं। पुरुष लिंग की सहायक ग्रंथियों के अंतर्गत एक जोड़ा शुक्राशय, एक पुरस्थ (प्रोस्टेट) ग्रंथि तथा एक जोड़ा बल्बोयूरेथ्रल ग्रंथियां शामिल होती हैं। इन गं्रथियों का स्राव शुक्रीय (सेमिनल) प्लाज्मा का निर्माण करता है जो प्रुफक्टोज (पफल शर्करा), कैल्सियम तथा वुफछ प्रकिण्व (एंजाइम्स) से भरपूर होता है। बल्वोयूरेथ्रल ग्रंथियों का स्राव मैथुन के दौरान शिश्न में स्नेहन (लूब्रिकेशन) प्रदान करने में भी सहायक होता है।
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